Thursday, February 11, 2010
रिलीज़ होने वाली है।
कल माई नेम इज़ ख़ान रिलीज़ होने वाली है। शाहरुख़ उम्मीद कर रहे होंगे कि यह फ़िल्म थ्री ईडियट्स से भी बड़ी ओपेनिंग लेगी और उस से भी बड़ी हिट साबित होगी। मुम्बई के कुछ सिनेमाघरों में शिवसेना के कार्यकर्ता इसका विरोध कर रहे हैं लेकिन वह विरोध असल में नुक़सान पहुँचाने के बजाय फ़ाएदा पहुँचा रहा है। मेरी ये बात कुछ लोगों को अजीब लग सकती है मगर सच्चाई ये है कि शाहरुख़ ख़ान और शिवसेना की यह लड़ाई बहुत ही सोच-समझ कर लड़ी जा रही है। और इसमे सचेत पहल की है शाहरुख़ ने। आई पी एल के ऑक्शन के दूसरे-तीसरे दिन एन डी टी वी २४x७ पर आकर उन्होने आई पी एल के उस फ़ैसले पर तीखी प्रतिक्रिया करते हुए सवाल खड़ा किया, जिसमें आठों टीम के मालिकों ने सम्भवतः किसी ‘गुप्त समझौते’ के तहत किसी भी पाकिस्तानी खिलाड़ी को नहीं ख़रीदा। भारत सरकार के ऐसे फ़ैसले में किसी भी तरह की कोई भी भूमिका होने की बात तो अब पाकिस्तान में भी ख़ारिज की जा चुकी है। तो टीम ओनर्स ने यह फ़ैसला क्यों किया? शिल्पा शेट्टी और प्रीति ज़िन्टा ने बतलाया कि वे पाकिस्तानी खिलाडि़यों को सुरक्षा देने में असमर्थ थे। यह सुरक्षा का सवाल इस भय से उपज रहा है कि देश में किसी भी वक़्त पाकिस्तानी आतंकवादी एक और २६/११ जैसा हमला कर सकते हैं; ख़ुद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री भी इस बारे में कोई गारन्टी देने को तैयार नहीं है। ऐसे हमले की सूरत में देश की जनसंख्या का एक हिस्सा एक बार फिर हर पाकिस्तानी के ख़िलाफ़ खड़ा हो जाएगा और पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आई पी एल से निकालने की माँग करने लगेगा और उन्हे खिलाना एक सुरक्षा मुद्दा बन जाएगा। तो इस तरह के किसी भी झंझट से बचने के लिए- हर अच्छा बिज़नेसमैन अपने जोखिम को न्यूनतम रखना चाहता है- आई पी एल टीम ओनर्स ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों को न ख़रीदने का फ़ैसला किया। यह अच्छा राजनीतिबोध नहीं था, मगर अच्छा बिज़नेसबोध ज़रूर था। शाहरुख़ ने आई पी एल टीम ओनर्स के फ़ैसले में भागीदारी की और कोई पाकिस्तानी खिलाड़ी नहीं ख़रीदा। वे चाहते तो जिसे चाहते ख़रीद लेते, मगर नहीं ख़रीदा? क्यों नहीं ख़रीदा? बिज़नेसबोध की वजह से नहीं ख़रीदा। तो फिर तीन रोज़ बाद एन डी टी वी २४x७ पर आकर इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ बयान देने की क्या ज़रूरत थी? भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर टीका-टिप्पणी करने की क्या ज़रूरत थी? और आस्टेलिया में भारतीय छात्रों पर हो रहे हमले के ख़िलाफ़ शिवसेना द्वारा आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को न खेलने देने की धमकी की कड़ी आलोचना करने की क्या ज़रूरत थी? क्या शाहरुख़ राजनीतिकर्मी हैं? वे तो बिज़नेसमैन हैं। आज के पहले तो उन्होने कोई राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं की। इस मसले पर क्यों की? इस मसले में इस तरह के बयान देने के क्या उनका कोई हित सिद्ध होता है? जी, होता है। हर फ़िल्म मनोरंजन का ज़रिया होता है। लेकिन मनोरंजन की भी राजनीति होती है। कुछ फ़िल्में उस राजनीति को मोटे शब्दों में रेखांकित करती हैं कुछ और इश्क़िया की तरह बच कर निकल जाती हैं। माई नेम इज़ ख़ान की एक राजनीति है। यह वह राजनीति है जो कुछ आतंकवादियों के चलते मुसलमानों को दुनिया भर में शिकार बनाए जाने का विरोध करती है। मैं इस राजनीति के साथ हूँ। लेकिन शाहरुख़ इस राजनीति का इस्तेमाल अपने बिज़नेस हितों को आगे बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। मुझे लगता है कि उन्होने ख़ूब सोच-समझ कर शिवसेना के साथ यह पंगा लिया है। और शिवसेना उन पर हमला कर के, उनको विक्टिमाइज़ कर के उनके हाथों में खेल रही है। और शाहरुख़ को अपनी फ़िल्म का एक मेटा-नैरिटिव बनाने में मदद कर रही है। मीडिया से किसी भी समझदारी की उम्मीद करना बेकार है वे बिकने के लिए कुछ भी कर लेंगे। और प्रगतिशील मीडिया प्रगतिशीलता के लिए कुछ भी कर लेगा। अपने शीर्ष से धकेले गए दो लोग आपस में लड़ कर एक दूसरे को मदद कर रहे हैं। दोनों अपनी खोई गद्दी हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। एक मराठी मानुस के नए चैम्पियन राज ठाकरे से और दूसरे बॉलीवुड के सबसे अधिक बिकने वाले नए बादशाह आमिर ख़ान से। तो शाहरुख़, शिवसेना की मदद से अपने आप को- एक मुसलमान को- विक्टिम के रूप में प्रोजेक्ट कर के यह उम्मीद कर रहे हैं कि मोरक्को से लेकर इन्डोनिशिया, इंगलैण्ड, और अमेरिका का मायूस मुसलमान उनकी फ़िल्म की टिकट ख़रीदेगा, दो घण्टे आँसू बहाएगा और शाहरुख़ ख़ान को थ्री ईडियट्स से ज़्यादा कमाई करवा कर वापस बादशाह बनवा देगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment